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एसएमएस मेडिकल कॉलेज में नई सौगात : जल्द शुरू होगी रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी

जयपुर

राजधानी जयपुर स्थित सवाई मानसिंह (एसएमएस) मेडिकल कॉलेज का यूरोलॉजी विभाग एक और ऐतिहासिक कदम उठाने जा रहा है। यहां जल्द ही रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट की सुविधा शुरू होने जा रही है।जिसके बाद sms देश के उन चुनिंदा मेडिकल इंस्टीट्यूट में शामिल हो जाएगा जहाँ रोबोट द्वारा किडनी ट्रांसप्लांट किया जा रहा है, SMS मेडिकल कॉलेज के यूरोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ शिवम प्रियदर्शी का कहना है की हमारे यहाँ रीनल यानि किडनी  ट्रांसप्लांट हालात पिछले 20-25 वर्षों से लगातार किया जा रहा है और वर्ष 2015 से कैडेवर ट्रांसप्लांट भी हो रहे हैं, इसी बीच अगले कुछ दिनों बाद में पहला रोबॉटिक किडनी ट्रांसप्लांट करने की भी तैयारी चल रही है, डॉक्टर शिवम का कहना है कि रोबोटिक सर्जरी तकनीक से मरीजों को और अधिक सुरक्षित, सटीक और कम तकलीफ़देह उपचार मिलेगा।

बिना चीरा लगाए किडनी ट्रांसप्लांट
डॉ. शिवम के अनुसार, एसएमएस मेडिकल कॉलेज के यूरोलॉजी विभाग में रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट शुरू करना राजस्थान की स्वास्थ्य सेवाओं में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी। उन्होंने बताया कि पहले किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान पेट में बड़ा चीरा लगाया जाता था, लेकिन इस नई तकनीक में बिना बड़े चीरे के किडनी ट्रांसप्लांट किया जाएगा, जिससे मरीज को कम दर्द होगा। इस प्रक्रिया में डॉक्टर सीधे ऑपरेशन नहीं करते, बल्कि रोबोटिक आर्म्स की मदद से 3-डी विजन और हाई-डेफिनिशन कैमरे द्वारा सर्जरी की जाती है। पारंपरिक तरीकों की तुलना में इसमें केवल छोटे-छोटे चीरे लगते हैं, जिससे रक्तस्राव, दर्द और संक्रमण का खतरा कम होता है और मरीज जल्दी स्वस्थ हो जाता है।

मरीजों के लिए लाभ:

    ऑपरेशन के 24 घंटे के भीतर मरीज चल-फिर सकता है।

    अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि कम हो जाती है।

    बड़ी सर्जरी के निशान नहीं रहते, जिससे दिखने में भी सुधार होता है।

    मरीज जल्द सामान्य जीवन में लौट पाता है।

    सटीकता में वृद्धि
    डॉ. शिवम के अनुसार, रोबोटिक किडनी ट्रांसप्लांट जटिल सर्जरी को भी सुरक्षित और कुशल तरीके से करने में मदद करता है। पारंपरिक ट्रांसप्लांट में नसों और रक्त वाहिकाओं को जोड़ने में अधिक समय और जोखिम रहता है, लेकिन रोबोटिक तकनीक से यह प्रक्रिया अधिक सटीक और सरल हो जाती है। वर्तमान में यह सुविधा देश के कुछ चुनिंदा बड़े निजी अस्पतालों में ही उपलब्ध है। ऐसे में सरकारी स्तर पर इस तकनीक का आरंभ होना मरीजों के लिए एक बड़ी राहत साबित होगा।

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