चंडीगढ़
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इंजीनियरिंग में डिग्री या डिप्लोमा प्रदान करने वाली तकनीकी शिक्षा में सिद्धांत और व्यावहारिक दोनों शामिल होने चाहिए। पीठ ने कहा कि व्यावहारिक सत्र तकनीकी शिक्षा की रीढ़ हैं।
सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए, जस्टिस हरप्रीत सिंह बराड़ ने कहा, प्रैक्टिकल्स ऐसी शिक्षा की रीढ़ हैं, जो एक व्यावहारिक दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां सैद्धांतिक सिद्धांतों को प्रदर्शकों या व्याख्याताओं की देखरेख में लागू किया जाता है।
सैद्धांतिक कक्षाओं में दिए गए ज्ञान को व्यावहारिक सत्रों के माध्यम से सुदृढ़ किया जाना चाहिए। इस प्रकार, व्यावहारिक कार्य तकनीकी शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग हैं।
संशोधन के लिए AICTI की स्वीकृति जरूरी
इस मामले में अदालत की सहायता सीनियर एडवोकेट डीएस पटवालिया और राजीव आत्मा राम के साथ-साथ वकील गौरवजीत सिंह पटवालिया और बृजेश खोसला ने की।
जस्टिस बराड़ ने स्पष्ट किया कि तकनीकी शिक्षा प्रणाली में प्रैक्टिकल अनिवार्य होने की स्थापित अवधारणा को अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTI) की स्पष्ट स्वीकृति के बिना संशोधित या रिप्लेस नहीं किया जा सकता।
डायरेक्शन का अभाव
यदि इस स्थापित अवधारणा, जो तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए एक गुणात्मक मानदंड के रूप में कार्य करती है, को किसी भी स्थिति में डिस्टेंस एजूकेशन द्वारा संशोधित या रिप्लेस किया जाना है, तो एआईसीटीई को ऐसे संशोधन को स्पष्ट रूप से स्वीकार करना होगा। तकनीकी शिक्षा के रेगुलर पाठ्यक्रम को बदलने या संशोधित करने के लिए आवश्यक मानदंडों का निर्धारण पूरी तरह से एआईसीटीई के अधिकार क्षेत्र में है।
जस्टिस बराड़ ने इस संबंध में कोई भी निर्णय स्पष्ट और सुस्पष्ट होना चाहिए और केवल दिशा निर्देशों के अभाव से इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
पीठ ने कहा- छात्रों की सरकारी नौकरी प्रभावित होगी
पीठ ने आगे कहा कि एआईसीटीई ने अपनी स्पष्ट स्थिति व्यक्त की है कि डिस्टेंस एजूकेशन के माध्यम से प्राप्त इंजीनियरिंग डिप्लोमा न तो स्वीकृत हैं और न ही मान्यता प्राप्त हैं। इन टिप्पणियों के छात्रों और संस्थानों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकते हैं।
निर्णय स्पष्ट करता है कि एआईसीटीई की स्वीकृति के बिना डिस्टेंस एजूकेशन के जरिए से इंजीनियरिंग में प्रदान किए गए डिप्लोमा मान्य नहीं माने जाएंगे, जिससे छात्रों की सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा के लिए पात्रता प्रभावित होगी।
कोर्ट ने एआईसीटीई सौंपी जिम्मेदारी
यह आदेश अनधिकृत दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों, तकनीकी शिक्षा में तेज़ी से हो रही वृद्धि और नियामक निगरानी की कमी को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आया है। कोर्ट के निर्देश में एआईसीटीई को यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है कि केवल गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने वाले वास्तविक संस्थानों को ही काम करने दिया जाए, जबकि छात्रों और आम जनता को गैर-अनुमोदित कार्यक्रमों से सावधान रहना होगा।