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यूपी में प्राइवेट महिला टीचर्स को तोहफा: अब मिलेगी 6 महीने की पेड मेटरनिटी लीव

लखनऊ 

राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने वाराणसी स्थित सनबीम वीमेंस कॉलेज वरुणा को शिकायतकर्ता संगीता प्रजापति को सात दिनों के अंदर मातृत्व लाभ (Maternity Leave) मुहैया कराने का दिया आदेश दिया है. NCW ने कहा कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अनुसार मातृत्व लाभ प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान पर लागू होता है, क्योंकि यह प्रत्येक महिला का मूलाधिकार है.

कानून के तहत कामकाजी महिलाओं को पूरी सैलरी के साथ छह महीने की मेटरनिटी लीव नहीं देने के मामले में सनबीम समूह को राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) से झटका लगा है. राष्ट्रीय महिला आयोग ने सनबीम समूह के वाराणसी स्थित सनबीम वीमेंस कॉलेज वरुणा को सात दिनों के अंदर शिकायतकर्ता को मेरटनिटी लीव देने का आदेश दिया है. मातृत्व अवकाश छुट्टी महिला को संतान जन्म के समय दी जाती है, ताकि वह अपने बच्चे के जन्म के बाद आराम कर सके और बच्चे की देखभाल कर सके.

मातृत्व लाभ अधिनियम सभी शिक्षण संस्थानों पर लागू होता है

आयोग की सदस्य एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अर्चना मजूमदार ने बुधवार को जारी अपने आदेश में लिखा है, 'मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के अनुसार मातृत्व लाभ प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान में लागू होता है, क्योंकि यह प्रत्येक महिला का एक मौलिक अधिकार है.' आयोग के इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश के निजी शैक्षणिक संस्थानों में काम कर रही महिलाओं के लिए सैलरी के साथ छह महीने की मेटरनिटी लीव का रास्ता खुल गया है. यह राज्य का पहला मामला है जिसमें किसी आयोग या न्यायालय ने किसी निजी शैक्षणिक संस्था में काम कर रही महिला कर्मचारी को छह महीने का मातृत्व लाभ प्रदान करने का आदेश दिया है.

बता दें कि सनबीम वुमेन्स कॉलेज वरुणा में 15 दिसम्बर 2021 से पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में कार्यरत संगीता प्रजापति ने पिछले साल 2 अगस्त को एक बच्चे को जन्म दिया था. उन्होंने उत्तर प्रदेश शासन के शासनादेशों और यूजीसी रेगुलेशन-2018 समेत मातृत्व लाभ कानून में उल्लिखित प्रावधानों के तहत महाविद्यालय प्रशासन से वेतन युक्त छह महीने का अवकाश मांगा था लेकिन उसने उनके अनुरोध को यह कहकर खारिज कर दिया कि वह एक स्ववित्तपोषित निजी संस्थान है और उस पर मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के प्रावधान लागू नहीं होते हैं. साथ ही उसने संगीता प्रजापति को कानूनी प्रावधानों में उल्लिखित छह महीने के मातृत्व अवकाश के बाद नौकरी पर वापस लेने से भी मना कर दिया था.

संगीता प्रजापति ने महाविद्यालय प्रबंधन के आदेश को पहले क्षेत्रीय श्रम प्रवर्तन अधिकारी सुनील कुमार द्विवेदी और अपर श्रमायुक्त/उप श्रमायुक्त डॉ. धर्मेंद्र कुमार सिंह के समक्ष चुनौती दी. उन्होंने माना कि सनबीम वुमेन्स कॉलेज वरुणा पर मातृत्व लाभ कानून के प्रावधान लागू होते हैं. क्षेत्रीय श्रम प्रवर्तन अधिकारी सुनील कुमार द्विवेदी ने गत 7 फरवरी को लिखित रूप से सनबीम वुमेन्स कॉलेज वरुणा को संगीता प्रजापति के छुट्टी देने का निर्देश दिया था लेकिन महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजीव सिंह और प्रशासक डॉ. शालिनी सिंह समेत उसके प्रबंधन तंत्र ने छुट्टी नहीं दी और ना ही उसे नौकरी पर वापस लिया.

महीनों तक किसी से शिकायत नहीं सुनी

पीड़िता ने इसकी शिकायत उत्तर प्रदेश शासन के श्रमायुक्त मार्कण्डेय शाही, श्रम मंत्री डॉ. अनिल राजभर, जिलाधिकारी सत्येंद्र कुमार, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की कुल-सचिव डॉ. सुनीता पाण्डेय, कुलपति ए.के. त्यागी, क्षेत्रीय उच्च शिक्षाधिकारी डॉ. ज्ञान प्रकाश वर्मा से भी लिखित रूप में की लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी इनमें से किसी ने भी कोई कार्रवाई नहीं की और ना ही महिला की शिकायत के संदर्भ में उसे कोई सूचना देना मुनासिब समझा.

उत्तर प्रदेश सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था से निराश संगीता प्रजापति ने 6 अगस्त को राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य डॉ. अर्चना मजूमदार से न्याय की गुहार लगाई. उनकी पहल पर आयोग ने 8 अगस्त को उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव महेंद्र प्रसाद अग्रवाल को नोटिस जारी कर पूरे प्रकरण पर कार्रवाई की लेकिन दो महीना बीत जाने के बाद भी उन्होंने आयोग या शिकायतकर्ता को किसी कार्रवाई की कोई सूचना दी.

आयोग की सदस्य डॉ. अर्चना मजूमदार ने गत 7 अगस्त को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस मामले पर सुनवाई की. सुनवाई में शिकायतकर्ता संगीता प्रजापति शामिल हुईं. वहीं, सनबीम वुमेन्स कॉलेज वरुणा की ओर से प्राचार्य डॉ. राजीव सिंह, प्रशासक डॉ. शालिनी सिंह और महाविद्यालय के लीगल हेड एवं अधिवक्ता देवेश त्रिपाठी शामिल हुए.

छुट्टी का आदेश आने के बाद क्या बोलीं संगीता प्रजापति

आयोग की सुनवाई के बारे में पूछे जाने पर पीड़िता संगीता प्रजापति ने कहा, 'मैं राष्ट्रीय महिला आयोग की सुनवाई से बहुत खुश हूं लेकिन नौकरी पर वापसी से संबंधित कोई सूचना नहीं होने से थोड़ी निराशा भी है. हालांकि अभी आयोग का अंतिम फैसला आना बाकी है, इसलिए इस पर विचार होने की पूरी संभावना है. मैं माननीय डॉ. अर्चना मजूमदार मैम की आभारी हूं कि उन्होंने मेरे अनुरोध का संज्ञान लेकर इस पर सुनवाई की और न्याय के पक्ष में खड़ी हुईं. मुझे पूरा विश्वास है कि राष्ट्रीय महिला आयोग से मुझे न्याय मिलेगा. मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहती हूं जो न्याय की इस लड़ाई में मेरा सहयोग कर रहे हैं. यह केवल मेरी लड़ाई नहीं है. यह उन सभी कामकाजी महिलाओं की लड़ाई है जिन्हें मातृत्व लाभ के उनके मूलाधिकार से वंचित किया जा रहा है.' 

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