राज्य

संवेदनहीनता! बैंक मैनेजर पिता की लाश जलाने का सौदा नहीं कर सके तो खिन्न होकर दरभंगा लौटे बेटे

भागलपुर
कोरोना संकट काल में सरकारी व्यवस्था के साथ आम आदमी की संवेदनाएं भी मर रही हैं। दो दिनों की मशक्कत के बाद लाश का अंतिम संस्कार हो पाया, लेकिन उनका बेटा शामिल नहीं हो सका। लाश जलाने की जो प्रक्रिया अपनायी जा रही थी उससे खिन्न होकर बेटा वापस अपने घर दरभंगा लौट गया। दरअसल यूको बैंक, मुख्य शाखा के वरीय प्रबंधक बीते शुक्रवार को कोरोना पॉजिटिव हो गये थे। मायागंज अस्पताल में उनकी मौत रविवार को हो गयी थी। इसके बाद दरभंगा से उनका बेटा व कोलकाता से साला भागलपुर पहुंचे और दो दिनों तक लाश जलाने को लेकर मशक्कत करते रहे। डीएसडब्लू डॉ. रामप्रवेश सिंह ने बताया कि लाश जलाने की कीमत वसूली जा रही थी। सोमवार को डेढ़ हजार रुपये से बोली लगी और परिवार वाले 40 हजार रुपये देने को तैयार हो गये थे। अंतिम बोली 50 हजार रुपये लगी। परिवार वाले ने मिन्नत आरजू की उनके पास अभी उतना रुपये नहीं है, 40 हजार रुपये ले लें। मात्र 10 हजार रुपये को लेकर फिर बात नहीं बनी। 

श्मशान घाट से लाश दोबारा अस्पताल पहुंची। इसके बाद मंगलवार की सुबह उनका बेटा दरभंगा व साला कोलकाता लौट गये। डीएसडब्लू ने बताया कि परिजन अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके और वापस अपने घर लौट गये। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने परिवार द्वारा लाश को लेने से इंकार की घटना मानते हुए  रोगी कल्याण समिति की ओर से श्मशान घाट पर 18 हजार रुपये दिलाया, जिसके बाद लाश मंगलवार की रात्रि तीन बजे जली। उन्होंने बताया कि बैंक के वरीय प्रबंधक के एक रिश्तेदार विश्वविद्यालय के वित्त पदाधिकारी हैं। उन्होंने उनकी लाश जलाने में मदद करने का आग्रह किया था। अस्पताल अधीक्षक व अंग विकास परिषद आदि के सहयोग से शव जलाया जा सका।

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