पॉलिटिक्स

कांग्रेस ने पायलट समर्थक दो MLA को पार्टी से किया निलंबित, देशभर में अपने नेताओं को दिया बड़ा संदेश

नई दिल्ली 

राजस्थान कांग्रेस के अंदर सचिन पायलट और सीएम अशोक गहलोत में 'साम-दाम-दंड-भेद' के सहारे एक दूसरे को शिकस्त देने की कवायद जारी है. पायलट ने अपने 18 समर्थक विधायकों के साथ बागी रुख अख्तियार किया तो कांग्रेस पहले मान-मनौव्वल की कोशिश करती रही, लेकिन पायलट अपनी मांगों-शर्तों से पीछे हटने को तैयार नहीं हुए.

ऐसे में कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने गहलोत सरकार की परवाह किए बगैर पायलट और उनके समर्थकों सख्त एक्शन लिया, जिसके जरिए कांग्रेस ने देशभर में अपने नेताओं को संदेश दे दिया है कि वो कोई भी हो, अगर पार्टी लाइन से बाहर जाता है तो उसके प्रति नरमी नहीं बरती जाएगी.

कांग्रेस की ओर से लगातार सचिन पायलट को पहले घर लौट आने का संदेश दिया जाता रहा. इसके बाद भी नहीं माने तो कांग्रेस ने पायलट को प्रदेश अध्यक्ष और डिप्टी सीएम पद से हटाया. साथ ही उनके दो समर्थक मंत्रियों की भी कैबिनेट से छुट्टी कर दी गई. इसके बाद कांग्रेस ने अनुशासन का डंडा चलता हुए हुए पायलट और उनके 18 कांग्रेसी समर्थक विधायकों को नोटिस भेजा. अब शुक्रवार को पायलट खेमे के दो विधायक भंवरलाल शर्मा और विश्वेंद्र सिंह को निलंबित कर दिया और सरकार गिराने की साजिश करने की एफआईआर भी एसओजी में दर्ज करा दिया है.
 
वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि उदारता, सबको साथ लेकर चलना अच्छे गुण हैं, मगर हमेशा इनसे काम नहीं चलता. कई मौके ऐसे आते हैं, जब परिवार से लेकर राजनीति तक कठोर फैसले लेना होते हैं, क्योंकि सिर्फ खुश करते चले जाने और दिल खोलकर देने से आप किसी को वफादार नहीं बना सकते. ऐसे में सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत होती है.

वह कहते हैं कि सचिन पायलट के मामले में कांग्रेस ने त्वरित और सख्त फैसले जैसे कदम उठाकर पार्टी कार्यकर्ताओं को संदेश ही नहीं दिया बल्कि अपनी मंशा को जाहिर कर दिया है. कांग्रेस के इस कदम का देशभर में पार्टी नेताओं के बीच संदेश जाएगा कि जब राहुल गांधी के दोस्त पर कार्रवाई हो सकती है तो दूसरे नेता के खिलाफ क्यों नहीं?
 
शकील अख्तर कहते हैं कि राष्ट्रीय नेतृत्व जब-जब कमजोर होता है तो पार्टी में अनुशासनहीनता बढ़ती है. इंदिरा गांधी मजबूत थी तो उस समय पार्टी में बगवात के लिए कोई सोच भी नहीं पाता था. इंदिरा के बाद राजीव गांधी और फिर सोनिया कठोर नेतृत्व के बदले समन्वय की राजनीति करते रहे.

इसी का प्रभाव यह पड़ा कि राजीव के बेहद विश्वासपात्र वीपी सिंह और रिश्तेदार अरुण नेहरू उनके खिलाफ बागवत कर गए. वैसे ही राहुल के साथ हुआ उनके दोस्त माने जाने वाले सिंधिया पहले अलग हुए और अब पायलट बागी हो गए. बीजेपी का उदाहरण देते हुए वह कहते हैं कि नरेंद्र मोदी के रूप में बीजेपी में मजबूत नेतृत्व है, इसी का नतीजा है बीजेपी में बगावत के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता.

शकील अख्तर कहते हैं कि सैंकड़ों नेता और हजारों लाखों कार्यकर्ता आज भी कांग्रेस और नेतृत्व के प्रति वफादार है, लेकिन सब एक ही बात चाहते हैं कि पैमाने सबके लिए एक जैसे हों. सचिन, सिंधिया, जितिन, देवड़ा, प्रिया दत्त और तमाम नेता जो अशोक गहलोत के शब्दों में बिना रगड़ाई के सब कुछ पा लिए, उनके लिए माफी, प्यार पुचकार और अन्य सामान्य नेता और कार्यकर्ता के लिए दूसरे कायदे कानून न हों.

कांग्रेस नेतृत्व इस दिशा में बढ़ता नजर आ रहा है. पायलट पर सिर्फ एक्शन ही हुआ है जबकि संजय झा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. कांग्रेस को फिर से खड़ा करना है तो उन्हें कई अप्रिय सवालों का सामना करना होगा और सख्त फैसले लेने होंगे.

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