पॉलिटिक्स

भाजपा की रणनीति सचिन पायलट की भावी तैयारी पर टिकी, सिर्फ सरकार गिराना ही काफी नहीं 

नई दिल्ली 
राजस्थान में असंतोष और बगावत की पशोपेश में उलझे सचिन पायलट को भाजपा ने फिलहाल उतनी ही तवज्जो दी जिससे कांग्रेस को तो झटका लगे, लेकिन भाजपा सीधी लड़ाई में न आए। अब पायलट की भावी तैयारी आगे की पटकथा लिखेगी। फिलहाल भाजपा व कांग्रेस के बीच संख्या बल में बड़े अंतर को पायलट की बगावत पूरा नहीं कर पा रही है। हालांकि भाजपा ने वहां पर कांग्रेस के दुर्ग के रास्ते देख लिए हैं और अब वह कभी भी सेंध लगा सकती है। भाजपा के लिए राजस्थान न तो महाराष्ट्र था और न ही मध्य प्रदेश। राजस्थान में राज्यसभा के हाल के चुनाव के दौरान भाजपा अपनी ताकत तौल चुकी थी। इस समय जबकि सचिन पायलट कांग्रेस के भीतर के हालात से परेशान होकर उसके पास आए, तो उसने उनके कंधे पर हाथ तो रखा, लेकिन राज तिलक करने से दूरी बनाए रखी। दरअसल पायलट के साथ जो विधायक खड़े थे उनसे कांग्रेस सरकार तो गिर सकती थी, लेकिन भाजपा की सरकार नहीं बन सकती थी। साथ ही पायलट भी असंतोष और बगावत की ऊहापोह से बाहर नहीं निकल पा रहे थे। भाजपा के एक बड़े नेता ने कहा है कि यह कांग्रेस की अन्दर की बगावत है। भाजपा ने तो अभी कुछ किया ही नहीं है। ऐसे में भाजपा नेतृत्व ने उतनी ही कोशिशें की जिससे कांग्रेस की दरारें और गहरी हो सके और भविष्य का रास्ता बन सके। सूत्रों के अनुसार भाजपा ने इस मिशन पर अपने किसी बड़े नेताओं को नहीं लगाया था, बल्कि उसके एक महामंत्री और एक उपाध्यक्ष ही कांग्रेस के अंदरूनी हालातों पर नजर रखे हुए थे। चूंकि सचिन पायलट ने खुद ही भाजपा से संपर्क किया था इसलिए भाजपा बहुत ज्यादा जल्दबाजी नहीं करना चाहती थी। पायलट ने भाजपा नेता ज्योतिराज सिंधिया से मुलाकात कर जो बातें सामने रखी थी, भाजपा ने उनका संज्ञान लिया।

पायलट के साथ कुछ ऐसे विधायक भी हैं जो सरकार तो गिरा सकते हैं, लेकिन भाजपा के साथ नहीं आ सकते हैं। ऐसे में पायलट को बीते 24 घंटे में कुछ ऐसी घटनाओं से मजबूत किया गया कि वे अपना खेमा बढ़ा सकें और गहलोत को दबाव में ला सकें। सूत्रों के अनुसार भाजपा नेता पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी सचिन को साथ लाने में सहमत नहीं दिखीं। जिस तरह मध्यप्रदेश में सिंधिया को साथ लाने की कवायद शिवराज सिंह चौहान ने की थी या महाराष्ट्र में देवेन्द्र फड़णवीस अजित पवार पर दांव लगा रहे थे वह राजस्थान में नहीं था। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और सचिन पायलट के संबंध काफी नजदीकी रहे हैं। इस घटनाक्रम में एक बड़ा सामाजिक समीकरण नजर आया वह था कि सचिन पायलट के साथ कई मीणा नेता भी खड़े हुए थे जो राजस्थान की राजनीति में गुर्जर और मीणा समुदाय के साथ आने का बड़ा संकेत हैं। इससे राजस्थान की आगे की सियासत प्रभावित हो सकती है। भाजपा फिलहाल कांग्रेस के भीतर समझौते और विरोध की हालातों पर नजर रखेगी। सूत्रों के अनुसार सचिन पायलट को भाजपा ने इतना आश्वस्त किया है कि अगर वे कांग्रेस में वापस जाने में संयोजित नहीं हो पाते हैं तो जल्दी ही अगली कार्ययोजना को शुरू किया जा सकता है।

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