पॉलिटिक्स

गहलोत को जिसने भी दी चुनौती उसे निपटा दिया, शह-मात के खेल में गहलोत ने दी पायलट को मात

नई दिल्ली 
राजस्थान में कांग्रेस के अंदर चल रहे शह-मात के खेल में एक फिर अशोक गहलोत भारी पड़े हैं. सचिन पायलट कांग्रेस के पहले नेता नहीं जिन्हें गहलोत ने राजनीतिक मात दी है बल्कि राजस्थान में पार्टी नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है. राजस्थान में सियासत के बादशाह माने जाने वाले हरिदेव जोशी, परसराम मदेरणा, नटवर सिंह, शिवचरण माथुर और सीपी जोशी तमाम कांग्रेसी नेताओं को सियासी शिकस्त देने में गहलोत सफल रहे हैं.

राजस्थान में पौने दो साल पहले कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री बनने में नाकाम रहे सचिन पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा उठा लिया. पायलट ने दावा किया कि उनके 25 विधायक हैं, लेकिन गहलोत ने सोमवार को विधायक दल की बैठक में 100 विधायकों को जुटाकर अपनी ताकत का एहसास करा दिया है. यही वजह रही कि गहलोत ने विक्ट्री का साइन दिखाया है. ऐसे में गहलोत को सत्ता से बेदखल करने में पायलट सफल नहीं रहे. हालांकि, इसी के साथ पायलट के सियासी भविष्य पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं.

राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार श्याम सुंदर शर्मा ने बताया कि सचिन पायलट राजस्थान में कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत के नेता हैं, लेकिन अगर बीजेपी में जाते हैं तो यह पोजिशन हासिल नहीं कर पाएंगे. 2018 में कांग्रेस को जीत दिलाकर वो हीरो बने थे, लेकिन बगावती रुख अख्तियार कर सचिन पायलट सिर्फ और सिर्फ अपना नुकसान ही करते जा रहे हैं. इसके अलावा कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की नजर में भी अपनी पायलट ने अपनी सियासी अहमियत खो दी है. इस तरह से इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम में गहलोत काफी ताकतवर बनकर उभरे हैं और पायलट को राजनीतिक को भारी सियासी धक्का लगा है.

राजस्थान में 90 के दशक में कांग्रेस में हरिदेव जोशी, परसराम मदेरणा, शिवचरण माथुर जैसे दिग्गजों का वर्चस्व कायम था. मदेरणा प्रदेश कांग्रेस कमिटी के चीफ हुआ करते थे और उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस 1990 और 1993 के विधानसभा चुनाव हार चुकी थी. गहलोत ने उसकी कुर्सी पर नजर गढ़ा दी थी. अशोक गहलोत पहले हरिदेव जोशी के साथ पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने. 1998 में विधानसभा चुनाव हुए तो राजस्थान में जाट आरक्षण आंदोलन उफान पर था. राजस्थान की कुल 200 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस 153 सीटें जीतने में सफल रही.

अब बारी थी कांग्रेस विधायक दल नेता चुनाव की थी. पहला दावा था, जाट नेताओं का था, आरक्षण आंदोलन ने जाटों को नई राजनीतक चेतना से लैस किया था. परसराम मदेरणा जाट समुदाय से आते थे और कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाते थे. पुराने कांग्रेसी थे. मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार. इसके अलावा दूसरे नंबर पर नटवर सिंह की दावेदारी थी. जाट होने के अलावा गांधी परिवार के करीबी थे. ये फैक्टर अब मायने रखता था क्योंकि राव-केसरी दौर बीत चुका था और अब सोनिया कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं.

राजस्थान के कांग्रेस प्रभारी माधव राव सिंधिया के अलावा गुलाब नबी आजाद, मोहसिना किदवई और बलराम जाखड़ एक होटल में रुके हुए थे. जाखड़ एक खास मामला सुलझाने के लिए होटल से बाहर गए हुए थे. बाकी के नेता बारी-बारी से नए चुने हुए विधायकों को तलब कर रहे थे. मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए, इस सवाल पर राय ली जा रही थी. विधायकों की पसंद जानने के बाद उन्हें एक लाइन में जवाब दिया जाता. ऐसे में गहलोत की बाजी परसराम मदेरणा पर भारी पड़ी. मदेरणा ने विधानसभा अध्यक्ष के पद के बदले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा छोड़ दिया. सबने मैडम की इच्छा को मान लिया. अशोक गहलोत की प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी हुई.

बीजेपी के भैरों सिंह शेखावत की सरकार के दौरान हरिदेव जोशी नेता प्रतिपक्ष थे, लेकिन गहलोत के आगे उनकी नहीं चली. अशोक गहलोत तुरुप का इक्का साबित हुए थे. ऐसे ही 2008 में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी थे. जोशी ने राजस्थान में जमकर मेहनत की और वसुंधरा राजे सरकार को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रहे, लेकिन खुद एक वोट से चुनाव हार गए. इसके बाद महिपाल मदेरणा ने कांग्रेस से मुख्यमंत्री के दावेदारी पेश की, लेकिन बाजी गहलोत के नाम लगी. राजनीतिक पंडित तो यहां तक कहते हैं कि सीपी जोशी की हार के पीछे गहलोत की अहम भूमिका रही है.

अशोक गहलोत 2008 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने तो सीपी जोशी के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए संगठन और सरकार के बीच तनातनी बनी रही. जोशी ने विरोध जारी रखा तो गहलोत ने ऐसे दांव चला कि वो चारों खाने चित हो गए. हालात, ऐसे बन गए कि राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में भ्रष्टाचार के एक मामले में सीपी जोशी फंस गए और इसी बाद उन्होंने अपने आपको सरेंडर कर दिया. इसके सीपी जोशी ने राष्ट्रीय राजनीति की ओर रुख किया और यूपीए सरकार में मंत्री बन गए.
 

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