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राव की अंतरिम जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका

नई दिल्ली 
 80 वर्षीय वामपंथी कवि और लेखक वरवरा राव गंभीर रूप से बीमार हैं और अब वह कोरोना वायरस से भी संक्रमित हो गए हैं. कोरोना पॉजिटिव होने के बाद उन्हें जेल से अस्पताल में भर्ती कराया गया है. राव एक विद्रोही किस्म के कार्यकर्ता माने जाते हैं और उन्हें भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले के अलावा कई अन्य मौकों पर भी गिरफ्तार किया जा चुका है.

पिछले दिनों राव की तबीयत बिगड़ने के बाद उनके परिजनों ने उन्हें हॉस्पिटल पहुंचाने की मांग की थी. पिछले 2 सालों से जेल में बंद कवि वरवरा राव के परिवार की मांग थी कि उनकी हालत काफी नाजुक है, ऐसे में उन्हें तत्काल हॉस्पिटल में भर्ती कराया जाना चाहिए.

इससे पहले 28 मई को वरवरा राव की तबीयत खराब होने की वजह से उन्हें मुंबई के जेजे हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था. फिर राव के परिजनों ने कोर्ट में जमानत पर रिहा करने की अर्जी दी थी, लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की ओर से राव को भीमा कोरेगांव केस में एक महत्वपूर्ण अभियुक्त करार देते हुए जमानत देने का विरोध किया और कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.

अब वयोवृद्ध लेखक और कवि वरवरा राव ने अंतरिम जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका लगाई है. इससे पहले 26 जून को एनआईए कोर्ट ने अंतरिम जमानत की उनकी याचिका खारिज कर दी थी.

कौन हैं वरवरा राव
तेलंगाना के वारंगल से ताल्लुक रखने वाले वरवरा राव माओवादियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले, कवि और पत्रकार हैं. एक मार्क्सवादी आलोचक के रूप में पहचाने जाने वाले राव ने कई लेख लिखे और सार्वजनिक सभाओं को संबोधित किया जिसमें नवउदारवादी राज्य की निंदा की गई. उन्होंने माओवादी विचारधारा के प्रचार के लिए 'विरासम' के नाम से प्रसिद्ध क्रांतिकारी लेखक संघ की स्थापना में अहम भूमिका निभाई.

राव सामाजिक कार्यकर्ता होने के अलावा एक बेहतरीन कवि भी हैं, और इनकी 15 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. वह 1957 से कविता लिख रहे हैं. उन्हें तेलुगू साहित्य के बेहतरीन आलोचकों में गिना जाता है.

1973 में पहली बार गिरफ्तारी
अपनी मुखरता को लेकर पहचान रखने वाले राव को भीमा कोरोगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार होने से पहले भी कई अन्य मौकों पर भी गिरफ्तार किया जा चुका है.

उनकी पहली गिरफ्तारी 1973 में हुई थी. तब वरवरा राव को आंध्र प्रदेश में आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) के तहत गिरफ्तार किया गया था. उन्हें आपातकाल के दौरान भी गिरफ्तार किया गया था और उन्हें कड़ी निगरानी में रखा गया था.

तख्तापलट के आरोप में गिरफ्तारी
आपातकाल के दौरान रिहा किए गए अन्य कैदियों के विपरीत, राव को जेल के प्रवेश द्वार पर फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और एक अतिरिक्त सप्ताह के लिए जेल में ही रखा गया. आपातकाल के बाद कई मौकों पर उनकी जान बची.

आंध्र प्रदेश सरकार के तख्तापलट की साजिश रचने को लेकर सिकंदराबाद कॉन्सप्रेसी केस में 46 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें राव भी शामिल थे. 1985 में एक बार फिर उन्हें जेल भेजा गया.
 

तेलुगू साहित्य में एमए करने वाले वरवरा राव रामनगर कॉन्सप्रेसी केस में भी एक आरोपी थे, जहां उन पर एक बैठक में भाग हिस्सा लेने का आरोप लगा, जिसमें आंध्र प्रदेश के पुलिस कांस्टेबल सांबैया और इंस्पेक्टर यादगिरी रेड्डी को मारने की योजना बनाई गई थी. 17 साल बाद 2003 में उन्हें आरोपों से बरी कर दिया गया.

राव 90 के दशक में चंद्रबाबू नायडू की सरकार द्वारा अपनाई गई वैश्वीकरण नीतियों के कट्टर विरोधी थे. वह आंध्र प्रदेश सरकार और नक्सलियों के बीच शांति वार्ता में पीपुल्स वार ग्रुप की ओर से एक दूत बनकर गए थे. लेकिन कई दौर की वार्ता विफल होने के बाद, उनके संगठन वीरासम को प्रतिबंधित कर दिया गया.

वीरासम के प्रतिबंध के लगने बाद वरवरा राव को 2005 में एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया और 2006 में उन्हें रिहा किया गया. 2014 में नए तेलंगाना राज्य के गठन के बाद से उन्हें चार बार गिरफ्तार किया जा चुका है.

नवंबर 2018 में हुए गिरफ्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के लिए माओवादी चरमपंथियों द्वारा कथित साजिश के सिलसिले में 5 राज्यों के 8 स्थानों पर अगस्त 2018 में ताबड़तोड़ छापे मारे गए. गिरफ्तार किए गए लोगों में राव के अलावा गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज और उनकी बेटी अनु भारद्वाज शामिल थे.

वरवरा राव का नाम उस समय जांच में सामने आया था जब पुणे पुलिस ने जून 2018 में नागपुर से सुरेंद्र गडलिंग को एल्गार परिषद रैली मामले में गिरफ्तार किया था. गडलिंग से एक पत्र बरामद किया गया जिसमें वरवरा राव ने गढ़चिरौली के सुरजगढ़ इलाके में नक्सलियों द्वारा किए गए हमले की सफलता पर उनकी प्रशंसा की थी. 17 नवंबर, 2018 को पुणे पुलिस ने उन्हें उनके हैदराबाद स्थित आवास भीमा कोरोगांव हिंसा मामले में कनेक्शन को लेकर गिरफ्तार किया था.
 

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