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वैज्ञानिकों को वैक्सीन कारगर होने पर संदेह 

 नई दिल्ली 
अब तक माना जा रहा था कि वैक्सीन दुनिया को कोरोना संकट से बचा लेगी। लेकिन कुछ नए रिसर्च में दावा किया गया है बीमारी से ठीक होने वालों में वायरस के खिलाफ मजबूत इम्यूनिटी नहीं बन रही है। जिन लोगों में बन रही है वजह भी महज कुछ महीने में कम हो रही है। इसलिए वैज्ञानिकों को वैक्सीन कारगर होने पर संदेह होने लगा है। 

संदेह क्यों?
ज्यादातर वैक्सीन इंसानी शरीर में वायरस के प्रति एक खास तरीके से एंटीबॉडी तैयार करने में मदद करती है। इन्हीं एंटीबॉडी से शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत बनता है और जब भी कोई वायरस शरीर पर हमला करता है तो यह प्रतिरक्षा तंत्र उससे बचाव करता है। किंग्स कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक डॉ. केटी डोरेस के मुताबिक, अगर एंटीबॉडी टिकाउ नहीं हुई और कुछ ही महीनों में इसका स्तर कम होने लगा तो इसका मतलब हुआ कि शरीर संक्रमण से लड़ने की क्षमता खो देगा। यानी वैक्सीन का असर कम माना जाएगा।

डब्ल्यूएचओ को भी शक
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आपातकालीन निदेशक माइक रायन ने कहा कि यह उम्मीद करना कि कुछ महीनों में प्रभावी वैक्सीन तैयार हो जाएगी, यह सच नहीं है। एंटीबॉडी कब तक प्रभावी बनी रहेगी, इसके बारे में भी अभी पुष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है।

एंटीबॉडी 17 फीसदी तक घट गई
किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने ठीक हो चुके मरीजों पर अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि इन मरीजों में बनी इम्युनिटी छोटी अवधि के लिए ही है। करीब आधे लोगों में तीसरे हफ्ते से ही एंटीबॉडी कम होने लगी और तीन महीने में मात्र 17 फीसदी रह गई। यानी ये लोग फिर संक्रमित हो सकते थे।

नहीं बनती मजबूत इम्युनिटी
मेलबर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 41 में से तीन लोगों में मजबूत इम्यूनिटी विकसित हुई। इतना ही नहीं, ठीक हो चुके मरीजों के दोबारा संक्रमित होने पर सिर्फ 14.1 फीसदी इम्युनिटी बनी। इतनी एंटीबॉडी संक्रमण से लड़ने से ज्यादा कारगर नहीं। 

प्लाज्मा दान करने में दिक्कत
कोरोना मरीजों को प्लाज्मा दान करने में भी यही दिक्कत आ रही है। कोवैलेंसेंट प्लाज्मा बैंक के मुताबिक हर 10 में से तीन कोविड मरीज प्लाज्मा दान करने के लायक नहीं हैं, क्योंकि उनके शरीर में पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबॉडीज नहीं बन रहे हैं। जब तक पर्याप्त एंटीबॉडीज नहीं बनेंगे तब तक उनके शरीर से प्लाज्मा नहीं लिया जा सकता है।

सबमें एक समान एंडीबॉडी नहीं
एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. नवल विक्रम के अनुसार फ्रांस और चीन में कुछ शोध के मुताबिक, एंटीबॉडी शरीर में 80 से 90 दिनों तक रह सकती है। हालांकि, भारत में इस पर कोई अध्ययन नहीं हुआ है। किसी मरीज में कितने दिन तक एंटीबॉडी रहेगी यह उस व्यक्ति की शारीरिक क्षमता पर भी निर्भर करता है। यह भी सही है कि सभी लोगों में पर्याप्त एंटीबॉडी नहीं बनती है। वैक्सीन बनाने के बाद यह देखना होगा कि वह कम से कम 70 से 80 फीसदी लोगों को सुरक्षा दे। इससे कम लोगों को सुरक्षा देने वाली वैक्सीन का फायदा नहीं होगा।

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