औरंगाबाद
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में कोरोना वायरस से जान गंवाने वाले लोगों के शवों का अंतिम संस्कार करने वाले शवदाहगृह के कर्मियों में घबराहट है। उनका कहना है कि उन्होंने शवों को खराब हालत तक में देखा है, लेकिन यह स्थिति अलग है। गोविंद गायकवाड जब एंबुलेंस के सायरन की आवाज़ सुनते हैं तो परेशान हो जाते हैं। उनकी परेशानी वास्तविक है क्योंकि वह अंतिम संस्कार के क्रम में शव के नजदीक रहते हैं। अंतिम संस्कार के बाद वह वह अपनी पत्नी और बच्चे के पास लौटते हैं जो वहीं शवदाहगृह परिसर में बने एक छोटे से कमरे में रहते हैं। गायकवाड़ ने कहा, "हम शवों का निपटान करने के आदी है। कुछ बार तो शव विकृत हालत में होते हैं, लेकिन यह स्थिति अलग है। जैसे ही मैं एंबुलेंस के सायरन की आवाज़ सुनता हूं, मैं घबरा जाता हूं।" उन्होंने कहा, "मेरे बच्चे श्मशानघाट परिसर में खेलते हैं, लेकिन अब हम उन्हें घर से नहीं निकलने देते।"
गायकवाड ने कहा, "हम बेसब्री से सैनेटाइजेश उपकरण के आने का इंजतार करते हैं। जब परिसर संक्रमण मुक्त कर दिया जाता है तो हम चैन की सांस लेते हैं।" गायकवाड और उनके साथी शव के दाह संस्कार के बाद अस्थियों को जमा करते हैं। उन्होंने कहा, "हमारे पास यह कार्य करने के लिए उपकरण हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा डर कम हो जाता है।" महामारी के बीच क्या बदलाव वह देखते हैं, इस सवाल पर गायकवाड ने कहा कि कोविड-19 से जान गंवाने वाले परिवार के सदस्य की अस्थियां एकत्र करने बहुत कम लोग आते हैं। बेगमपुरा श्मशानघाट के रखवाले रामू गायकवाड कहते हैं कि पिछले तीन-चार महीनों से अंतिम संस्कार के लिए सामान की व्यवस्था करना और बंद दरवाजों में रहना ही दिनचर्या बन गई है। यह श्मशानघाट सरकारी मेडिकल कॉलेज के पड़ोस में स्थित है। रामू ने कहा, "हमने शवों को खराब रूप में देखा है, लेकिन कभी नहीं डरे। मगर यह अदृश्य वायरस खतरा है।" उन्होंने कहा कि उनके बुजुर्ग पिता अब भी श्मशानघाट में काम करते हैं। रामू ने कहा, "मैं उनकी काम में मदद करता हैं। मैं और मेरा परिवार वर्षों से यहां रह रहा है, लेकिन मैंने अपने जीवन में ऐसा डर कभी महसूस नहीं किया है।" औरंगाबाद में 13 जुलाई तक कोरोना वायरस के 8,650 मामले हैं और 354 लोगों की मौत हो गई है।