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हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर रखने की मांग को लेकर आरएसएस ने तेज की मुहिम

हैदराबाद
हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर रखने की मांग को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का रुख और अधिक स्पष्ट हो गया है। आरएसएस ने इस बदलाव को भारत की सांस्कृतिक पहचान की पुनर्स्थापना का हिस्सा बताया है। संघ की सांस्कृतिक इकाई प्रज्ञा प्रवाह द्वारा आयोजित चार दिन तक चलने वाला लोकमंथन कार्यक्रम इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी पहले ही भाग्यनगर नाम की वकालत कर चुके हैं। अब आरएसएस के इस कदम से नाम बदलने की बहस और तेज हो गई है।

कार्यक्रम उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू करेंगी
प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे. नंदकुमार ने कहा, "हमारे लिए यह शहर हमेशा से भाग्यनगर महानगर रहा है और रहेगा। यह नाम शहर के प्रसिद्ध भाग्यलक्ष्मी मंदिर से आया है। यह भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का प्रतीक है।" लोकमंथन के सभी निमंत्रण-पत्रों और पोस्टरों में हैदराबाद को भाग्यनगर बताया गया है। इस कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू करेंगी और इसमें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल होंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक, लोकमंथन एक ऐसा मंच है जहां देशभर के कलाकार, बुद्धिजीवी और शिक्षाविद् मिलकर भारत की सांस्कृतिक चुनौतियों पर मंथन करने के लिए पहुंचने वाले। इस बार के आयोजन का विषय है लोकावलोकन है, जो भारतीय परंपराओं और लोकाचारों की गहराई से जांच-पड़ताल करता है। इस कार्यक्रम में लोक विचार, लोक व्यवहार और लोक व्यवस्था जैसे तीन आयामों पर चर्चा होगी। आयोजन में लिथुआनिया, आर्मेनिया, इंडोनेशिया और रूस जैसे देशों से भी प्रतिनिधि शामिल होंगे।

तेलंगाना सीएम रेवंत रेड्डी को भी न्योता
आरएसएस के अनुसार, लोकमंथन का उद्देश्य औपनिवेशिक विचारधाराओं का खंडन करना है, जिन्होंने भारतीय समाज को विभाजित करने की कोशिश की। संघ का कहना है कि यह कार्यक्रम भारत की सांस्कृतिक एकता और परंपराओं को फिर से उभारने का प्रयास है। कार्यक्रम समिति के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी ने इसे भारत की साझा सांस्कृतिक धरोहर को समझने का अवसर बताया। हालांकि, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने अपनी व्यस्तता के चलते इस कार्यक्रम में शामिल होने में असमर्थता जताई है।

आरएसएस ने लोकमंथन के जरिए हिंदुत्व की परिभाषा को धार्मिक सीमाओं से परे रखते हुए इसे एक सांस्कृतिक और समावेशी परंपरा के रूप में प्रस्तुत किया। संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, "हिंदुत्व कभी किसी विशेष पूजा पद्धति का समर्थन नहीं करता। यह सभी को जोड़ने वाली प्राचीन परंपरा है।"

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