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Kargil Vijay Diwas: सैनिक ने सुनाई कारगिल युद्ध की कहानी, उन चोटियों की जुबानी, जहां भारतीय वीरों ने खून से रंग दिया बर्फ का ग्लेशियर..

भारत हर साल 26 जुलाई की तारीख को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाता है। यह दिन बेहद खास है। इस दिन कारगिल की पहाड़ियों पर भारतीय सेना का पराक्रम पूरी दुनिया ने देखा था।आज (26 जुलाई) कारगिल विजय दिवस के 25वां साल पूरे हो रहे हैं। साल 1999 में आज ही के दिन भारतीय सेना ने 60 दिन से ज्यादा चले युद्ध में पाकिस्तान को हराते हुए कारगिल की पहाड़ियों को पूरी तरह घुसपैठियों मुक्त करवा लिया था। पढ़िए इस युद्ध की कहानी..

जब एक सेकेंड में मारे गए 4 साथी

महार रेजिमेंट के सैनिक विजय डागा और उनके साथी तुरतुक सेक्टर में 51172 हिल (नंबर्स के आधार पर सेना पहाड़ी को कुछ नाम देती है) पर तैनात थे। तुरतुक भारत की आखिरी चौकी है। इसके बाद पाकिस्तान नियंत्रित गिलगित-बल्तिस्तान शुरू होता है।

विजय बताते हैं,’हम लगातार फायरिंग कर रहे थे। पाकिस्तानी पोस्ट से वहां की आर्मी हम पर गोलियां चला रही थी। एक दिन गोलीबारी के बीच मैं अपने साथियों से उनके घर की बातें कर रहा था। पानी लेकर आना था, मैंने उनसे कहा कि तुम लोग जाओ मैं यहां रहूंगा। वे जिद करने लगे कि तुम पानी लेकर आओ। मैं और मेरा एक साथी पोस्ट से नीचे पानी लेने उतरे।’

जैसे ही विजय पानी लेने गए उनके बंकर पर पाकिस्तान की ओर से तीन बम गिरे। दो बंकर के अगल-बगल और एक बम बिल्कुल बंकर पर ही गिरा। ‘मेरे 4 साथियों की कराहने तक की आवाज नहीं आई, ब्लास्ट में सब मारे गए। मैं भागकर ऊपर पहुंचा। जवाब में गोलियां भी बरसाईं। मेरे 4 साथी जिनसे 5 मिनट पहले हंसी-मजाक कर रहा था, वे शहीद हो गए थे।’

‘मैं पूरी रात शहीदों के शवों के साथ ही बैठा रहा। हमारे वायरलेस सेट वगैरह सब टूट-फूट चुके थे। पूरी रात यही सोचता रहा कि कैसे बैकअप के लिए कम्युनिकेट करूं। सुबह हुई तो बड़ी मुश्किल से यूनिट की दूसरी टीम को हमने खबर दी। बैकअप मिला, शहीदों के शवों को रवाना किया गया।’

‘हम लगातार अपनी पोस्ट पर तैनात रहे और फायरिंग का जवाब देते रहे। और वो दिन भी आया जब अपनी पोस्ट पर हमने तिरंगा फहराया। हम लोग भारत माता की जय के नारे इतनी जोर-जोर से हम लगा रहे थे कि आवाज पाकिस्तान तक जा रही थी।’

1 दिन में 3 सौ बम गिरते पहली बार देखा

किन हालात में सैनिक कारगिल वॉर में भारतीय सीमा की रक्षा में लगे थे, उसे इस किस्से से समझिए। विजय कहते हैं, ‘हमनें ट्रेनिंग में फायरिंग देखी थी। मगर इतनी हैवी फायरिंग नहीं देखी थी। पाकिस्तानी सेना ने कारगिल एरिया में अपनी बड़ी गंस से 300 बम गिराए थे। उनकी ओर से एक दिन हैवी फायर आ रहा था।’

‘पहाड़ के पहाड़ गिर जाएंगे ऐसा लग रहा था। पाकिस्तानी आर्टिलरी का फायर आ रहा था। आसपास के हिस्से में लगातार 300 बम पाकिस्तान ने गिराए थे। बमों की आवाज से जमीन हिल रही थी। एक के बाद एक 300 ब्लास्ट मैंने आंखों से देखे और मेने कानों ने वो प्रेशर झेला है। जब ये हो रहा था, हम जवाब दे रहे थे। भारतीय सेना की ओर से भी बम का जवाब बमों से दिया गया था।’

कारगिल में हालात खराब होने से कुछ दिन पहले ही विजय रायपुर अपने घर छुट्‌टी पर आए थे। रेडियो पर खबर सुनी कि युद्ध के हालात बन रहे हैं। यूनिट ने भी बुलावा भेजा था। युद्ध में शामिल होने विजय रवाना हो रहे थे। सारे शहर में ये खबर फैल गई कि रायपुर से सैनिक कारगिल युद्ध में शामिल होने जा रहा है।

‘जयस्तंभ चौक से लेकर रेलवे स्टेशन तक भीड़ थी, हर कोई यही कहता दिख रहा था कि विजय से मिलकर उसे भेजेंगे। एक सिख व्यक्ति मेरे पास आए, कृपाण से उन्होंने अपने हाथ से लहू निकाला। उनकी आंखों में आंसू थे, मुझे उन्होंने अपने लहू से तिलक लगाया, और कहा कि आज मेरा लहू देश के वीर के तिलक के काम आया।’ मैंने उनकी भावनाओं का सम्मान किया। लोग दंडवत होकर मुझे प्रणाम कर रहे थे, ये सम्मान लोगों का देश की सेना के प्रति था।

अपनी ड्यूटी के दौरान पाकिस्तानी फौज के मंसूबों का पता विजय ने लगाया था। इंडियन आर्मी पोस्ट (बॉर्डर का वो हिस्सा जहां सैनिकों की तैनाती होती है) पर बैठे हुए विजय ने सेना के रेडियो सेट पर पाकिस्तानी आर्मी का एक मैसेज पकड़ लिया। पाक आर्मी के लोग ये कहते हुए सुनाई दिए कि टाइगर खाना खा रहा है, अब निकलने वाला है।

ये एक कोड मैसेज था जो वे आपस में पास कर रहे थे। ये मैसेज सुनकर विजय ने अपनी टीम को बताया। इस मैसेज में पाकिस्तानी, इंडियन आर्मी के सीओ (कमांडिंग ऑफिसर) को टाइगर कह रहे थे। पाकिस्तानी कुछ करते इससे पहले ही इंडियन आर्मी अलर्ट हो चुकी थी।

विजय कहते हैं, ‘कारगिल युद्ध के समय चिट्‌ठी हमारे लिए जिंदगी को जीने और खुद को युद्ध के माहौल में बूस्ट करने वाली चीज होती थी। घरवालों की याद आए तो आज हम वीडियो कॉल कर लेते हैं। तब हमें चिट्‌ठी कभी लेट मिलती थी, कभी कारगिल एरिया में बर्फ या पानी से गीली होकर फट जाती थी।’

‘उसे जैसे-तैसे सुखाकर घर वालों का हाल जाना करते थे। चिट्‌ठी पढ़कर उस माहौल में जो सुकून मिलता था, मैं बता नहीं सकता। किसी दौलत या मूल्य से उस भावना को तौला नहीं जा सकता। परिवार के साथ ही मोहल्ले और शहर के लोग हमें वहां पत्र भेजा करते थे।’

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