बिलासपुर
पुलिस हिरासत में युवक की संदिग्ध मौत के मामले में हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को मृतक के परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा, जहां किसी व्यक्ति की मौत पुलिस हिरासत में होती है, वहां मृत्यु का कारण स्पष्ट करना राज्य की जिम्मेदारी है। ऐसा न करना जीवन और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। मौत के हालात यह दिखाते हैं कि मृतक को अमानवीय यातना दी गई थी और यह मामला कस्टोडियल बर्बरता का उदाहरण है।
पूरा मामला धमतरी जिले के अर्जुनी थाना का है। याचिकाकर्ता दुर्गा देवी कैठोलिया ने बताया कि उनके पति दुर्गेंद्र कैठोलिया को 29 मार्च 2025 को धोखाधड़ी के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था। 31 मार्च को उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां वे पूरी तरह स्वस्थ थे। शाम 5 बजे उन्हें फिर से थाने में रखा गया, जहां कुछ ही घंटों में उनकी मौत हो गई। परिजन का आरोप है कि पुलिस ने हिरासत में थर्ड डिग्री टार्चर दिया, जिससे दुर्गेंद्र की मौत हो गई।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर पर 24 चोटों का है जिक्र
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शरीर पर 24 पूर्व-मृत्यु चोटों का जिक्र है। मौत का कारण दम घुटने से सांस न ले पाने को बताया गया। दूसरे दिन पुलिस ने परिवार को बताया कि दुर्गेंद्र बीमार पड़ गए थे और अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन बाद में पता चला कि उनकी पहले ही मौत हो चुकी थी। शव मिलने पर परिवार ने शरीर पर चोट के निशान देखकर हंगामा किया और उच्चाधिकारियों से शिकायत की। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि सभी साक्ष्य साफ बताते हैं कि यह मौत पुलिस की यातना से हुई है। यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि मौत के हालात यह दिखाते हैं कि मृतक को अमानवीय यातना दी गई थी।
मृतक की पत्नी और माता-पिता को मुआवजा देने के निर्देश
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि मृतक की पत्नी दुर्गा देवी को तीन लाख की राशि दी जाए, ताकि वह और उनके दो नाबालिग बच्चों की देखभाल कर सकें। मृतक के माता-पिता को प्रत्येक एक लाख दिए जाएं। यह भुगतान 8 हफ्ते के भीतर किया जाए अन्यथा राशि पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगेगा।