लखनऊ
सहारा ने नगर निगम द्वारा सहारा शहर में लीज पर दी गई जमीनों और उन पर बनी संपत्तियों में हस्तक्षेप को चुनौती दी है। याचिका 8 अक्तूबर को न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध है। याचिका में नगर निगम द्वारा 8 और 11 सितंबर 2025 को जारी किए गए आदेशों को रद्द करने का आग्रह किया गया है। सहारा ने याचिका में कहा है कि इस मामले में सिविल कोर्ट में पहले से ही स्थगन आदेश लागू है। इसके अलावा, आर्बिट्रेशन की कार्यवाही में भी नगर निगम को सहारा के पक्ष में लीज एग्रीमेंट बढ़ाने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन नगर निगम ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। कंपनी का यह भी आरोप है कि कार्रवाई करने से पहले उसे सुनवाई का उचित अवसर नहीं दिया गया। याचिका के अनुसार, नगर निगम ने 22 अक्टूबर 1994 और 23 जून 1995 को गोमती नगर में सहारा को जमीन पट्टे पर दी थी। सहारा ने इन जमीनों पर 2480 करोड़ रुपए की लागत से 87 आवासीय और वाणिज्यिक संपत्तियां विकसित की हैं।
दशकों से विवादों में है यह जगह, बन सकती है विधानसभा?
सहारा शहर शुरू से ही विवादों में रहा। नगर निगम से लीज मिलने के तीन साल बाद ही कानूनी विवाद शुरू हो गया था, जो 27 साल तक चलता रहा। ऐसे में आवासीय योजना कभी परवान नहीं चढ़ सकी और करोड़ों का लीज रेंट भी नगर निगम को नहीं मिला।
नगर निगम ने सहारा हाउसिंग कंपनी को 130 एकड़ जमीन आवासीय योजना और 40 एकड़ ग्रीन बेल्ट विकसित करने के लिए 30 साल की लीज पर दी थी। यह अनुबंध महज 100 रुपये के स्टांप पेपर पर किया गया था, लेकिन तीन साल बाद लीज शर्तों के उल्लंघन पर तत्कालीन नगर आयुक्त दिवाकर त्रिपाठी ने इसे निरस्त करने का नोटिस जारी कर दिया। इसके बाद मामला अदालत में चला और साल तक अटका रहा।
करीब 10 साल पहले जब सहारा की स्थिति सुधरी तो लीज रजिस्टर्ड की गई और संशोधन भी हुआ। एलडीए में मानचित्र भी पास करने के लिए भेजा गया। सहारा ने 15 आवंटियों की सूची भी दी, ताकि यह साबित कर सके कि योजना पर काम चल रहा है, लेकिन वे आवंटी कभी सामने नहीं आए और उनके नाम पर लीज डीड भी नहीं हो सकी। सेबी के दखल और कानूनी उलझनों के चलते योजना ठप पड़ गई। लीज की अवधि पूरी होने के बाद नगर निगम ने जमीन पर कब्जा ले लिया है।
सहारा सिटी की जमीन पर अब क्या बनेगा, इसे लेकर कई अटकलें हैं। सूत्रों के अनुसार, सरकार नई विधानसभा भवन के लिए करीब 200 एकड़ जमीन की तलाश लंबे समय से कर रही है। ऐसे में नगर निगम की 170 एकड़ और एलडीए की 75 एकड़ जमीन को मिलाकर करीब 245 एकड़ क्षेत्र यहां उपलब्ध है। यह जगह लोकेशन और आवागमन दोनों के लिहाज से उपयुक्त मानी जा रही है।