चंडीगढ़
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन और काॅलेज शिक्षकों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर अपना विस्तृत फैसला सुनाया। मामला कॉलेजों में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु 58 वर्ष या 65 वर्ष होने को लेकर था। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि शिक्षकों को 65 वर्ष तक सेवा में बने रहने का लाभ मिलेगा। जैसा कि पहले जोगेंद्र पाल सिंह केस में तय किया गया था ।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने 21 मार्च 2023 को आदेश दिया था कि शिक्षकों को 65 वर्ष तक सेवा जारी रखने का अधिकार है। चंडीगढ़ प्रशासन ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। प्रशासन का तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट के जगदीश प्रसाद शर्मा बनाम बिहार राज्य (2013) के फैसले को सही दृष्टिकोण से लागू नहीं किया गया और 58 वर्ष की सीमा ही मान्य है।
दूसरी ओर, शिक्षकों ने दलील दी कि उन्हें उनके सहयोगियों की तरह समान लाभ मिलना चाहिए, जिन्हें पहले ही 65 वर्ष तक सेवा का अधिकार मिल चुका है। यदि कुछ शिक्षकों को 65 वर्ष तक काम करने दिया जाए और कुछ को 58 पर रिटायर किया जाए तो यह भेदभाव और कानून की भावना के खिलाफ होगा।
हाईकोर्ट ने कहा कि 29 मार्च 2022 की अधिसूचना से 1 अप्रैल 2022 से चंडीगढ़ में शिक्षकों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष कर दी गई है। इसलिए जो शिक्षक पहले रिटायर हो गए थे और बाद में न्यायाधिकरण के आदेश पर वापस सेवा में लौटे, उन्हें भी 65 वर्ष तक काम करने का अवसर मिलना चाहिए।
हालांकि, कोर्ट ने शिक्षकों की उस मांग को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने 58 वर्ष से 65 वर्ष की उम्र तक के बीच के पूरे वेतन-भत्तों के बकाये की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि इस दौरान शिक्षक पेंशन और रिटायरमेंट लाभ ले रहे थे, इसलिए उन्हें दोहरा लाभ नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने यह जरूर माना कि उन्हें वेतनवृद्धि और इंक्रीमेंट्स का लाभ मिलेगा, ताकि उनकी वेतन-फिक्सेशन सही हो सके।
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि प्रशासन ने पहले ही कैट के आदेश को लागू कर दिया है और कई शिक्षक रिटायरमेंट लाभ लौटाकर वापस सेवा में जुड़ चुके हैं, ऐसे में अब इस फैसले से पीछे हटना न्यायोचित नहीं होगा।
हाईकोर्ट ने कहा समान परिस्थितियों में कर्मचारियों को अलग-अलग मानकों से नहीं तौला जा सकता। इस आदेश से चंडीगढ़ के कई शिक्षकों को बड़ी राहत मिली है।