दिल्ली के एम्स (AIIMS) अस्पताल ने डीआरडीओ (DRDO) और आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) के साथ मिलकर इंडीजीनस वियरेबल लोअर लिंब रोबोट एक्सोस्केलेटन डेवलप करने का बीड़ा उठाया है. इसके जरिए स्ट्रोक के मरीज और स्पाइनट कॉर्ड इंजरी पेशेंट को मदद मिलेगी और वो मांसपेशियों में ताकत हासिल कर सकेंगे और साथ ही उन्हें मूवमेंट करना आसान हो जाएगा. यानी भविष्य उन्हें बेडरिडेन या व्हीलचेयर के सहारे जिंदगीभर नहीं रहना होगा.
कैसे तैयार होगा वियरेबल रोबोट?
एम्स के ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. भावुक गर्ग (Bhavuk Garg) ने टाइम्स ऑफ इंडिया को कहा कि पहले स्टेज में, हेल्दी लोगों और उन लोगों के बीच एक पैटर्न की पहचान की गई है जो किसी भी प्रकार के आघात के कारण अपने निचले अंगों में समस्याओं का सामना करते हैं और इसे पहनने वाले रोबोट में भी रेप्लिकेट किया जाएगा.
डॉ. भावुक ने आगे बताया कि पहनने वाले "रोबोट-असिस्टेड ट्रेनिंग" तेजी से एक ऐसी विधि के रूप में उभर रहा है जो गेट रिहैबिलिटेशन में सुधार करने में मदद करता है. उन्होंने कहा, 'हमारे पास पहले से ही 100 से ज्यादा मरीजों का डेटा है. “रोबोट की पारदर्शिता में सुधार करने के लिए, हमने मानव शरीर की संरचना का अध्ययन किया, फिर निचले अंग के एक्सोस्केलेटन के बायोमेट्रिक डिजाइन के आधार पर अपना मॉडल बनाया, अब तक, इजराइल में बने एक्सोस्केलेटन की कीमत 80 से 90 लाख रुपये है. हालाँकि, स्वदेशी रोबोट मामूली कीमत पर उपलब्ध होंगे."
बदल सकती है पेशेंट की जिंदगी
आईआईटी दिल्ली के मैकेनिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर अनूप चावला (Anoop Chawla)ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उन्होंने पहचान की है कि चलने के दौरान एक सेहतमंद इंसान में किस प्रकार की मसल लोडिंग पैटर्न शामिल था और चलने में परेशानी महसूस करने वाले लोगों में किस तरह का पैटर्न शामिल था.
रोबोटिक एक्सोस्केलेटन ये जानकारी लेगा और बाहरी सहायता से व्यक्ति का आकलन करने का प्रयास करेगा, ताकि रोगी को चलने में सहायता मिल सके. उन्होंने कहा, "हमारा ध्यान टखने, घुटने और कूल्हे के जोड़ों को सहारा देने के लिए निचले अंग के एक्सोस्केलेटन पर है." उन्होंने कहा कि इसे हल्का बनाने का आइडिया था ताकि लोग इसका आसानी से इस्तेमाल कर सकें.