राज्य

राजस्थान की पाॅलिटिक्स में बाबाओं की भूमिका, बीजेपी का भी दांव

जयपुर.

राजस्थान की राजनीति में बाबाओं की भूमिका है। बीजेपी ने तीन बाबाओं का टिकट दिया है। अलवर के तिजारा से महंत बालकनाथ, जयपुर की हवामहल से आचार्य बालमुकुंद, औऱ पोकरण से भाजपा ने प्रत्याशी महंत प्रतापपुरी को टिकट दिया है। राजस्थान के चुनावी रण में ऐसे संत दो दान-दक्षिणा पाकर करोड़पति बने है। अब बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी ने इस बार हिंदुत्व कार्ड खेला है। यानि किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया है।

जबकि कांग्रेस ने 15 मुस्लिमों को टिकट दिया है। पिछली बार बीजेपी ने युनूस खान को टिकट दिया था। लेकिन इस बार नहीं दिया। युनूस खान निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। वह बीजेपी के एकमात्र मुस्लिम चेहरा माने जाते थे। तिजारा से महंत बालकनाथ चुनाव लड़ रहे
हैं। कांग्रेस ने इस बार इमरान खान को प्रत्याशी बनाया है। बसपा से ऐनवक्त पर पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हुए इमरान खान कड़े मुकाबले में है। बालकनाथ के लिए राहत की बात यह है कि बीजेपी के बागियों से चुनौती नहीं मिल रही है। जैसलमेर की पोकरण से गहलोत के मंत्री सालेह मोहम्मद के सामने एक बार फिर महंत प्रतापपुरी है। सालेह मोहम्मद विधानसभा चुनाव 2018 में महंत को चुनाव हरा चुके हैं। जयपुर की हवामहल से कांग्रेस ने इस बार कैबिनेट मंत्री महेश जोशी का टिकट काट दिया है। उनके स्थान पर जिला अध्यक्ष केके तिवाड़ी को उम्मीदवार बनाया है। आचार्य बालमुकुंद अपने भाषणों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं। जबकि केके तिवाड़ी जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं। महेश जोशी गहलोत समर्थक माने जाते है। पार्टी ने ऐनवक्त पर उनका टिकट काट दिया। हालांकि, महेश जोशी ने बड़ी शालीनता से पार्टी के फैसले को भी स्वीकार कर लिया है।

सियासत में अहम रोल
सियासी जानकारों का कहना है कि राजस्थान की धरती पर 'बाबा' पॉलिटिक्स का एक अपना खेल चलता रहता है। सरकार किसी की भी हो, कथा वाचकों और बाबाओं की सक्रियता ना थमती है और ना ही इनके बिना किसी भी नेता की सियासत पूरी मानी जाती है। सियासत में वैसे भी माहौल का बनना ज्यादा जरूरी माना जाता है, उसी माहौल को बनाने में ये धर्म गुरू या बाबा अपनी भूमिका अदा करते हैं। चुनावी मौसम में किसे कितना इन बाबाओं से फायदा होता है, इसे लेकर एक अलग डिबेट चलती रहती है, लेकिन देखा गया है कि हर पार्टी और हर नेता उन कथा वाचकों के पास भी जाती है, उनके कार्यक्रम भी करवाती है और धार्मिक ध्रुवीकरण का एक प्रयास हर बार दिख जाता है। हर पार्टी अपनी विचारधारा से ऊपर उठकर उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है।

Leave a Reply

Back to top button