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अजा-जजा एक्ट पर एससी के आदेश के पालन के लिए पीएचक्यू से जारी निर्देश रद्द,

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रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने एससी-एसटी एस्ट्रोसिटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को राज्य में लागू करने के फैसले को पलट दिया है।

सीएम डॉ रमन सिंह ने पत्र वार्ता में कहा कि पुलिस मुख्यालय से जारी आदेश को फिलहाल स्थगित रखा जाएगा। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार अपना पक्ष रखेगी ।पिछले दिनों एडीजी अपराध अनुसंधान एके विज ने राज्य के सभी जिला पुलिस अधीक्षकों से कहा है कि वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का कड़ाई से पालन करें वरना उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई तो होगी ही, साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना के दोषी भी होंगे। विज ने 6 अप्रैल को यह पत्र जारी किया था। अत्याचार निवारण अधिनियम के मामलों में अग्रिम जमानत स्वीकार करने में कोई रोक नहीं है। अगर प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है या जहां न्यायिक स्क्रूटनी पर शिकायत प्रथम दृष्टया झूठी पाई जाती है। ऐसे मामले में केवल नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी की लिखित अनुमति से और गैर सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की अनुमति के बाद हो सकती है। स्वीकृति देने के कारणों का उल्लेख प्रत्येक मामले में किया जाना आवश्यक है। मजिस्ट्रेट के उक्त कारणों की स्क्रूटनी किए जाने के बाद ही आगामी अभिरक्षा का आदेश देगा। एक निर्दोष को झूठा फंसाने से बचाने के लिए प्रारंभिक जांच हो सकती है। जांच में ये पता लगाया जाएगा कि आरोपों में अत्याचार निवारण अधिनियम का अपराध बनता है या नहीं और वह आरोप तुच्छ या उत्प्रेरित तो नहीं है। छत्तीसगढ़ में इस आदेश के लागू होने पर कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधा था। प्रदेश प्रभारी पी एल पुनिया ने कहा था कि बीजेपी के कथनी और करनी में अंतर है। उधर, केन्द्र सरकार एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर खत्म करने के लिए अध्यादेश लाने पर विचार कर रही है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में सुप्रीम के आदेश के परिपालन में जारी आदेश को स्थगित करने का फैसला लिया गया है। सीएम ने मीडिया से बातचीत में कहा कि दलित समाज की भावना का ख्याल रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार भी अब सुप्रीम कोर्ट जाएगी और अपना पक्ष रखेगी ।

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सीएम डॉ रमन सिंह ने पत्र वार्ता में कहा कि पुलिस मुख्यालय से जारी आदेश को फिलहाल स्थगित रखा जाएगा। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार अपना पक्ष रखेगी ।पिछले दिनों एडीजी अपराध अनुसंधान एके विज ने राज्य के सभी जिला पुलिस अधीक्षकों से कहा है कि वे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का कड़ाई से पालन करें वरना उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई तो होगी ही, साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना के दोषी भी होंगे। विज ने 6 अप्रैल को यह पत्र जारी किया था। अत्याचार निवारण अधिनियम के मामलों में अग्रिम जमानत स्वीकार करने में कोई रोक नहीं है। अगर प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है या जहां न्यायिक स्क्रूटनी पर शिकायत प्रथम दृष्टया झूठी पाई जाती है। ऐसे मामले में केवल नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी की लिखित अनुमति से और गैर सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की अनुमति के बाद हो सकती है। स्वीकृति देने के कारणों का उल्लेख प्रत्येक मामले में किया जाना आवश्यक है। मजिस्ट्रेट के उक्त कारणों की स्क्रूटनी किए जाने के बाद ही आगामी अभिरक्षा का आदेश देगा। एक निर्दोष को झूठा फंसाने से बचाने के लिए प्रारंभिक जांच हो सकती है। जांच में ये पता लगाया जाएगा कि आरोपों में अत्याचार निवारण अधिनियम का अपराध बनता है या नहीं और वह आरोप तुच्छ या उत्प्रेरित तो नहीं है। छत्तीसगढ़ में इस आदेश के लागू होने पर कांग्रेस ने सरकार पर निशाना साधा था। प्रदेश प्रभारी पी एल पुनिया ने कहा था कि बीजेपी के कथनी और करनी में अंतर है। उधर, केन्द्र सरकार एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर खत्म करने के लिए अध्यादेश लाने पर विचार कर रही है। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में सुप्रीम के आदेश के परिपालन में जारी आदेश को स्थगित करने का फैसला लिया गया है। सीएम ने मीडिया से बातचीत में कहा कि दलित समाज की भावना का ख्याल रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार भी अब सुप्रीम कोर्ट जाएगी और अपना पक्ष रखेगी ।

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