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इस तरह खाइए गेहूं की रोटी मिलेगा पूरा पोषण

गेहूं की रोटी बनाने के 8 से 12 घंटे के अंदर खानी चाहिए। इस समय यह अधिक पौष्टिक होती है। आपको ध्यान होगा कि पुराने समय में बासी रोटी खाने का रिवाज था। गांवों में तो आज भी इस नियम को माना जाता है। दरअसल, बासी रोटी उस मील (भोजन) को कहा जाता था, जिसे किसान अपने खेत पर काम करने जाने से पहले खाते थे। यह समय आमतौर पर सुबह 5 बजे से पहले का होता था। तो इस समय खाई जानेवाली रोटी को रात में ही तैयार करके रख दिया जाता था और फिर उसे सुबह के समय गर्म दूध के साथ खाने का चलन था।

यह एक बड़ी वजह है कि किसान इतनी मेहनत और श्रम वाला काम कर पाते थे। लेकिन बदलते वक्त के साथ यह चलन भी बदल गया और हम बासी रोटी को हेय दृष्टि से देखने लगे। जबकि बासी रोटी यानी 8 से 12 घंटे पहले बनी हुई रोटी पोषण के मामले में बहुत अधिक गुणकारी होती है। ऐसा क्यों है इस बारे में आगे बताया गया है…

-जिन लोगों का बैकग्राउंड गांव का है वे जानते हैं कि गांवों में दूध को रातभर गर्म होने के लिए रख दिया जाता था। इस प्रॉसेस को दूध-ओटाना कहते हैं और जिस जगह पर इस दूध को रातभर गर्म किया जाता था उसे बरोसी कहते हैं। बरोसी चिकनी मिट्टी से बनी एक ऐसी भट्टी की तरह होती है, जिसमें रात को उपले (कंडे) और छोटी लकड़ियां जलाकर रख दी जाती थीं। ये रात पर धीमी गति से जलती हैं और दूध को लगातार आंच (हीट) देती रहती हैं।

-बरोसी में मिट्टी की एक बड़ी हांडी में भरकर दूध रखा जाता था ताकि वह उबलकर बाहर ना आ सके। रात भर यह दूध पकता रहता था और सुबह खेत पर काम करने जाने से पहले इस गर्म दूध के साथ गेहूं की रात में बनाई गई रोटी खाई जाती थी। लंच और डिनर की तरह इस फूड टाइमिंग को 'बासी रोटी' खाने के नाम से ही जाना जाता है। अगर किसी से कोई पूछता कि सुबह से कुछ खाया है या नहीं तो सामने वाला उत्तर देता कि 'हां बासी रोटी खाई है' और इस बासी-रोटी में कुछ भी नेगेटिव या कमतर आंकने जैसा नहीं होता है।

-अब बात इस विषय पर करते हैं कि आखिर गेहूं की रोटी बासी होने यानी कि करीब 8 घंटे बाद अधिक पौष्टिक क्यों होती है? तो इसका कारण यह है कि गेहूं को जब पकाया जाता है तो पकने के करीब 8 घंटे तक स्टोर करने के बाद उसकी पौषण क्षमता प्राकृतिक रूप से बढ़ जाती है।

-भारत के ज्यादातर घरों में गेहूं के आटे की रोटियां खाई जाती हैं। गेहूं के आटे में कार्बोहाइड्रेट भरपूर मात्रा में होता है साथ ही इससे प्रोटीन का पोषण भी मिलता है। साथ ही बिना छाने आटे की रोटियां बनाने से उनमें फाइबर भी प्रचुर मात्रा में होता है। क्योंकि गेंहू के ऊपर की महीन परत नैचरल और पौष्टिक फाइबर से बनी होती है।

-प्रोटीन, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट के मिश्रण को जब एक निश्चित तापमान पर गर्म करने के बाद निश्चित समय तक ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है तो उसमें हमारे पेट और आंतों के लिए महत्वपूर्ण अच्छे बैक्टीरिया का निर्माण हो जाता है। ये पेट में जाकर हमारे पाचन तंत्र और आंतों को सेहतमंद रखने का काम करते हैं।

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