रायपुर पुलिस के मुताबिक रेलवे स्टेशन के करीब बालाजी डोरमेट्री में रामचित बिंद नाम का एक युवक लॉकर में कुछ संदिग्ध समान लेकर चला गया है। पुलिस इस सूचना पर पहुंची, तो लॉकर में पैकेट में बंद 4 किलोग्राम सफेद पाउटर मिला…पुलिस को ड्रग्स का संदेह हुआ…लिहाजा पाउडर को FSL के पास जांच के लिए भेजा, तो फारेंसिंक की रिपोर्ट देख पुलिस सन्न रह गयी। पुलिस जिसे ड्रग्स समझ रही थी.. दरअसल वो ड्रग्स नहीं बेहद कीमती जीवन रक्षक दवाई मेग्लूमाइऩ के पाउडर थे।
इस मामले में अब पुलिस की जांच की दिशा बदल चुकी थी.। पुलिस ने इस मामले में पहले तार जोड़ते हुए अब तक 6 आरोपियों की गिरफ्तारी की है.. जबकि पुलिस का मानना है ये रैकेट पूरे देश में फैला है, जिनमें शामिल लोगों की संख्या काफी ज्यादा हो सकती है।
पुलिस को आरोपी रामलगन पांडेय, नंदलाल बिंद, राजेंद्र बिंद, महेंद्र बिंद औऱ अमरनाथ बिंद जो खुलासे किये हैं, वो बेहद चौकाने वाले हैं। गिरोह के मेंबर मुंबई में एक बड़े दवाई फैक्ट्री में काम करते हैं.. और वहां गोदाम के चौकीदारों से सेटिंग कर मेडिसिन के रॉ मेटेरियल को ड्रम से निकाल लिया करते थे और उसकी जगह पर स्टार्च पाउडर, हल्दी या कैल्शियम का पाउडर मिला देते थे, ताकि वजन का अंतर नहीं पता चल सके। और फिर मेडिसिन माफियाओं के जरिये उड़ीसा के एक दवा फैक्ट्री में बेच दिया करते थे। 4 मार्च को जब माल को उड़ीसा ले जाने की कोशिश में गिरोह का एक सदस्य था, तो रेलवे स्टेशन में चल रही चेकिंग की वजह से बालाजी डोरमेट्री में रूक गया…और वहीं से इस गिरोह का भंडाफोड़ हुआ। इन शातिरों को ये पता था कि टेबलेट या कैप्सुल का शक्ल देने के पहले मेडिसिन टेस्टिंग होती है, लिहाजा मेडिसिन के रॉ मेटिरियल निकालने में भी बेहद सतर्कता बरतते थे.. ड्रम से उपर का कुछ हिस्सा पहले निकालकर रख लेते और फिर बीच का हिस्सा खाल कर देते .. उसी बीच के हिस्से में वो पाउडर, हल्दी या नमक जैसी चीजें डाल देते और फिर उसके उपर निकाला हुआ आरिजनल मेडिकल पेस्ट डाल देते। ऐसा ये इसलिए करते थे, ताकि अगर टेस्टिंग हो, तो क्वालिटी चेकर को बिल्कुल भी ना पता चले कि इसमें कुछ मिलावट है। यही नहीं कई जगहों पर ये लोग लूटेरे गिरोह का साथ लेकर भी मेडिसिन पेस्ट से भरी गाड़ियां लूट लिया करते थे। कई जगहों पर चोरी भी की जाती थी।
ये गिरोह हर उस इंसान को मीठा जहर परोसता था, जिसे जीवन रक्षक दवाई की जरूरत होती थी.. लेकिन इन गिरोह की कारगुजारियों की वजह से जो दवाईयां मरीजों को मिलती थी, वो गुणवत्ता विहीन हो जाती थी.. और कई बार मरीजों की जान पर भी आ जाती थी।