
बर्लिन।भारत में पैट्रोल और डीजल की बढती कीमतों ने जनता की नाक में दम कर रखा है। विपक्ष हो या आम जनता सरकार पर हर विरोध बेअसर नजर आ रहा है। पिछले नौ दिन में पेट्रोल 2.24 रुपए और डीजल 2.15 रुपए महंगा हुआ है। कई साल पहले ऐसे ही हालात जर्मनी में पैदा हुए थे। पर तब वहां के लोग सरकार के फैसले के इंतजार में नहीं बैठे थे। उन्होंने इसके विरोध का ऐसा तरीका निकाला था, कि रातोंरात सरकार को बढ़ी हुई कीमतें वापस लेनी पड़ी थी। इसलिए भारत की जनता को भी जर्मन से सबक लेना चाहिए।
मामला साल 2000 का है, जब जर्मनी सहित यूरोप के कई देशों में पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों के खिलाफ गुस्सा भड़ गया था। नतीजा ये हुआ कि लोग विरोध में उतर आए। यहां के लोगों ने सड़कों पर ही अपनी गाड़ियां छोड़ दी थी और काम पर निकल गए थे। दूर दराज के इलाकों और रूरल एरिया से 250 ट्रक ड्राइवर, किसान और टैक्सी ड्राइवर देश की राजधानी बर्लिन पहुंच गए। उन्होंने अपनी गाड़ियां सिटी सेैंटर पर सड़कों पर ही छोड़ दी थीं। ऐसे में 5 किमी तक गाड़ियां का काफिला खड़ा हो गया। कई घंटों तक हालात ऐसे ही रहे तो चारों तरफ अरफा-तफरी मच गई। हर तरफ सड़कों पर जाम लग गया था।
यहां की लेइपजिंग सिटी में रोड नेटवर्क को गाड़ियों से ब्लॉक करने के लिए करीब 300 किसान पहुंचे थे। ट्रक ड्राइवर्स ने बर्लिन के बाहर मेन रास्ता तक ब्लॉक कर दिया था, जिसके चलते कई किमी का लंबा जाम लग गया था। वहीं, बेल्जियम के बॉर्डर पर मौजूद दो कार फैक्ट्रीज में भी इसके चलते काम ठप हो गया। जनता के इस विरोध से सरकार पर दबाव बढ़ा और विपक्ष से भी कीमतें वापस लेने की डिमांड हुई और आखिरकार सरकार ने फ्यूल पर लगने वाले टैक्स को वापस ले लिया।